जानिए देश के तमाम हिस्सों में कैसे किया जाता है जन्माष्टमी का सेलिब्रेशन

admin
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भगवान श्रीकृष्ण ऐसे देवता है जिनके मंदिर सिर्फ भारत ही नहीं बल्कि विदेशों में भी हैं. इसलिए इनके जन्मोत्सव के दिन पूरे भारतवर्ष के अलावा विदेशों में भी श्रीकृष्ण नाम की धूम होती है. यहां जानिए भारत के तमाम हिस्सों में कैसे सेलिब्रेट की जाती है जन्माष्टमी.

भगवान श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव हर साल भाद्रपद मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी को होता है. हर साल इस दिन को जन्माष्टमी के रूप में मनाया जाता है. भगवान श्रीकृष्ण ऐसे हिंदू देवता हैं जिनके मंदिर सिर्फ भारत में ही नहीं, बल्कि विदेशों में भी हैं. इसलिए देश के तमाम हिस्सों में रह रहे लोगों के अलावा विदेशों में रहने वाले भारतीय लोग भी श्रीकृष्ण जन्माष्टमी को उत्सव की तरह मनाते हैं.

भारत में जन्माष्टमी के मौके पर कहीं कन्हैया की लीलाओं का आनंद लिया जाता है तो कहीं उन्हें 56 भोग अर्पित करके प्रसन्न करने का प्रयास किया जाता है. इस​ दिन भगवान के भक्त उनके लिए व्रत रखते हैं और रात में 12 बजे उनके जन्म के लिए तरह तरह की तैयारियां करते हैं. इस बार जन्माष्टमी का पर्व 30 अगस्त सोमवार को मनाया जाएगा. इस मौके पर हम आपको बताएंगे कि देश के तमाम हिस्सों में श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का पर्व कैसे मनाया जाता है.

ब्रज क्षेत्र

जन्माष्टमी को लेकर सबसे पहली बात ब्रज क्षेत्र की होनी चाहिए क्योंकि भगवान श्रीकृष्ण का जन्म मथुरा में हुआ था. इसके अलावा उन्होंने बाल्यकाल की सारी लीलाएं भी ब्रज में ही कीं. ब्रज के लोगों में आज भी श्रीकृष्ण के प्रति अलग ही प्यार और आस्था देखने को मिलती है. यहां श्रीकृष्ण को कान्हा, कन्हैया, माखनचोर आदि तमाम नामों से बुलाया जाता है. जन्माष्टमी के दिन यहां पूरा ब्रज कन्हैया के रंग में रंग जाता है. इस पर्व की तैयारियां पूरे ब्रज में काफी पहले से शुरू हो जाती हैं. लोग घरों व मंदिरों में झांकियां सजाते हैं. इन झांकियों के जरिए कृष्ण की बाल लीलाएं दिखाई जाती हैं. छोटे छोटे बच्चों को कन्हैया और राधा बनाया जाता है.

महिलाएं अपने कान्हा के लिए माखन और मिश्री के अलावा तमाम व्यंजन घर पर ही बनाती हैं. शाम के समय सभी मंदिरों में भजन और कीर्तन शुरू हो जाते हैं. रात में 12 बजे मथुरा स्थित श्रीकृष्ण जन्मभूमि में कन्हैया का जन्म कराया जाता है और उन्हें पंचामृत से स्नान कराया जाता है. ब्रज के लोग अपने घरों में भी 12 बजे नार वाले खीरे से कन्हैया का जन्म कराते हैं और उन्हें दूध, दही, घी, शहद और गंगाजल से स्नान कराकर मिष्ठान, मेवा, पंचामृत आदि का भोग लगाते हैं. सुंदर वस्त्र पहनाकर उन्हें झूले पर बैठाकर झुलाया जाता है. उसके बाद प्रसाद खाकर अपना व्रत खोलते हैं। इस मौके पर दूर दूर से लोग मथुरा वृंदावन पहुंचते हैं.

गुजरात

मथुरा छोड़ने के बाद भगवान श्रीकृष्ण द्वारका में बस गए थे. मान्यता है कि यहां उन्होंने द्वारकापुरी बसाई थी. इसलिए गुजरात के लोग उन्हें द्वारकाधीश श्रीकृष्ण के रूप में पूजते हैं. गुजरात में द्वारका के लोग दही हांडी के समान एक परंपरा के साथ त्योहार मनाते हैं, जिसे माखन हांडी कहा जाता है. इसके अलावा द्वारकाधीश मंदिर को फूलों से सजाया जाता है. छोटे छोटे बच्चों को कन्हैया बनाया जाता है. मंदिरों में लोग भजन गाते हैं, लोक नृत्य करते हैं. इसके अलावा कच्छ जिले के क्षेत्र में, किसान अपनी बैलगाड़ियों को सजाते हैं और सामूहिक गायन और नृत्य के साथ कृष्ण जुलूस निकालते हैं. कुल मिलाकर पूरे गुजरात में जय श्रीकृष्णा की धूम होती है.

महाराष्ट्र

यहां कन्हैया की बाल लीलाओं का भरपूर आनंद लिया जाता है. सड़क पर अच्छी खासी भीड़ होती है. एक मिट्टी की हांडी में माखन मिश्री भरकर टांगा जाता है जिसे एक लड़का कन्हैया बनकर तोड़ता है. इस तरह महाराष्ट्र में तमाम जगहों पर मटकी फोड़ प्रतियोगिता का आयोजन किया जाता है और जीतने वाले को इनाम भी दिया जाता है.

ओडिशा

ओडिशा में जगन्नाथपुरी मंदिर है जिसे चार धामों में से एक माना जाता है. जन्माष्टमी के मौके पर इस मंदिर को भव्य तरीके से सजाया जाता है. लोग इस दिन उपवास रखते हैं और रात को भगवान के जन्म के बाद ही उपवास खोलते हैं.

दक्षिण और पूर्वी भारत

यहां लोग घर की साफ सफाई कर रंगोली बनाते हैं और कन्हैया की मूर्ति स्थापित धूप, दीप और प्रसाद आदि चढ़ाते हैं. वहीं पूर्वी भारत की बात करें तो यहां कृष्ण भगवान की रासलीलाओं को मणिपुरी डांस स्टाइल में प्रस्तुत किया जाता है. इसके अलावा देश और विदेश में मौजूद इस्कॉन मंदिरों को भव्य तरीके से सजाया जाता है.

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