जामवंत की यह गुफा अत्यंत रहस्यमयी है, इस गुफा में दबा हुआ है अरबो का खजाना।।

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धरती का स्वर्ग कहलाए जाने वाला जम्मू- कश्मीर प्राचीन काल से ही आध्यात्मिक दृष्टि से काफी महत्वपूर्ण माना जाता है। ऋषि कश्यप की इस भूमि का वर्णन शिवपुराण से लेकर स्कंद पुराण सहित कई अन्य पुराणों में भी किया गया है। ऐसे में आज हम आपको जम्मू की ऐसी रहस्यमयी गुफा के बारे में बताने जा रहे हैं। जिसके संबंध में मान्यता है कि यहां आज भी अरबों का खजाना दफन है।

दरअसल तवी नदी के तट पर स्थित इस गुफा में कई पीर, फकीरों और ऋषि-मुनियों ने तपस्‍या की है जिसके कारण इस गुफा को ‘पीर खो गुफा’ के नाम से भी जाना जाता है, इसके अलावा इस गुफा का नाम जामवंत गुफा है। तो चलिए इस गुफा से जुड़ी विशेषताओं और मान्यताओं के बारे में जानते हैं।

दरअसल इस गुफा के जो जम्मू नगर के पूर्वी छोर पर पर है एक गुफा मंदिर भी बना हुआ है, जिसे जामवंत की तपोस्थली माना जाता है। माना जाता है कि यह गुफा देश के बाहर भी कई अन्य मंदिरों व गुफाओं से जुड़ी हुई है।

मान्‍यता के अनुसार जामवंत और भगवान श्रीकृष्ण के बीच युद्ध इसी गुफा में हुआ था। इसके अलावा कई ऋषियों ने यहां घोर तपस्या भी की है जिसके कारण इसका नाम ‘पीर खो’ भी पड़ गया। यह एक डोगरी भाषा का शब्द है जिसमें खोह का अर्थ है गुफा।

युद्ध से जामवंत नहीं थे संतुष्ट
मान्यता है कि त्रेता युग में राम रावण के युद्ध में जामवंत राम की सेना के सेनापति थे, और इस युद्ध के समापन पर भगवान राम जब सबसे विदा होकर अयोध्या लौटने लगे तो इस युद्ध से असंतुष्ट जामवंत जी ने श्रीराम से कहा कि हे प्रभु, युद्ध में सबको लड़ने का अवसर मिला, परंतु मुझे कहीं भी अपनी वीरता दिखाने का कोई अवसर नहीं मिला। जिस कारण युद्ध करने की मेरी इच्छा मेरे मन में ही रह गई।

उस समय भगवान श्रीराम ने जामवंत जी से कहा कि तुम्हारी ये इच्छा मैं अवश्य पूर्ण करूंगा, लेकिन यह में अपने कृष्ण अवतार के दौरान पूरी करूंगा। तब तक तुम मेरा इंतजार करना। इसके पश्चात द्वापर युग में भगवान कृष्ण ने अवतार लिया, तब भगवान श्रीकृष्ण ने इसी गुफा में स्यमन्तक मणि ( पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, राजा सत्यजीत ने सूर्य भगवान की तपस्या की तो भगवान ने प्रसन्न होकर राजा को स्यमन्तक मणि प्रसाद के रूप में दे दी। राजा का भाई स्यमन्तक मणि को चुराकर भाग गया पर जंगल में शेर के हमले में मारा गया और शेर ने स्यमन्तक मणि को निगल लिया. इसके बाद जामवंत ने युद्ध में शेर को हराकर स्यमन्तक मणि को हासिल कर लिया) को लेकर जामवंत से युद्ध किया जो लगातार 27 दिनों तक चलता रहा, जिसमें न कोई हारा और न कोई जीता। भगवान राम ने जामवंत से किया हुआ वादा पूरा करते हुए जामवंत से युद्ध किया।

इसके बाद यहीं जामवंत ने श्री कृष्ण को पहचानने के पश्चात भगवान श्री कृष्ण को अपने घर आमंत्रित किया। यहीं पर उन्होंने अपनी पुत्री जामवंती का हाथ श्री कृष्ण के हाथ में दिया और दहेज स्वरूप स्यमन्तक मणि को दिया।

एक रुद्राक्ष शिवलिंग सिर्फ यहीं
माना जाता है कि इसी गुफा में जामवंत ने एक रुद्राक्ष शिवलिंग बनाकर भगवान शिवजी की कई सालों तक तपस्या की। आज भी यह एक रुद्राक्ष शिवलिंग इसी गुफा में विराजमान है और इस शिवलिंग की आज भी यहां पूजा होती है। इस जामवंत शिव गुफा के दर्शन करने देश-विदेश से लोग आते हैं। कहा जाता है कि पूरे भारत में सिर्फ जामवंत गुफा पीर खोह में ही एक रुद्राक्ष शिवलिंग है।

जामवंत गुफा : 6 हजार साल से भी अधिक पुरानी
मान्यता के अनुसार सबसे पहले जामवंत गुफा की जानकारी शिव भक्त गुरु गोरखनाथ जी को पता चली थी और उन्होंने अपने शिष्य जोगी गरीबनाथ को इस गुफा की देखभाल करने के लिए कहा था। जामवंत गुफा 6 हजार साल से भी अधिक पुरानी मना जाता है। जम्मू-कश्मीर के राजा बैरमदेव जी ने 1454 ईस्वी से लेकर 1495 ईस्वी के दौरान इस गुफा में मंदिर का भी निर्माण करवाया था।

ऐसे पहुंचें यहां
जामवंत गुफा तक पहुंचने के लिए भक्त मोहल्ला पीर मिट्ठा के रास्ते गुफा तक जाते हैं। देवी-देवताओं के अनेक मनमोहक चित्र इस मंदिर की दीवारों पर उकेरे हुए हैं। वहीं आंगन में शिव मंदिर है। जामवंत गुफा के साथ तवी नदी के तट पर एक साधना कक्ष का भी निर्माण किया गया है।

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