एम्दीइस के ऐड में मसाला किंग ‘धर्मपाल गुलाटी’ की जगह दिखने वाला नया चेहरा कौन है?

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मसाला ब्रांड एमडीएच कोदेश का बड़ा ब्रांड बनाने वाले महाशय धर्मपाल गुलाटी3 दिसंबर 2020 को 98 साल की उम्र में इस दुनिया से चल बसे. उन्होंने फर्श से अर्श तक का सफर तय करते हुए तमाम कठिनाइयां सह कर ‘महाशियां दी हट्टी’ यानी MDH को एक बड़ा ब्रांड बनाया. धर्मपाल गुलाटी ने सिर्फ अपनी कंपनी को ही नहीं संभाला बल्कि वह जब तक जीवित रहे एमडीएच के विज्ञापनों में भी दिखते रहे.
MDH विज्ञापनों में दिख रहे हैं नए दादा जी

उनके जाने के बाद ये बड़ा सवाल था कि एमडीएच ब्रांड और उनके द्वारा किये जाने वाले विज्ञापनों का क्या होगा. ऐसे में ये खबर भी सामने आई कि एमडीएच कंपनी बिक सकती है लेकिन एमडीएच मसलों के विज्ञापनों में दिखने वाले एक नए बुजुर्ग ने ये बात साफ कर दी कि न तो एमडीएच मसालों की कंपनी बिकेगी और न ही ये विज्ञापन बंद होंगे.

एमडीएच के एड में मसाला किंग धर्मपाल गुलाटी की जगह एमडीएच के विज्ञापनों में दिखने वाले हैं महाशय धर्मपाल गुलाटी के बेटे राजीव गुलाटी. वह एमडीएच कंपनी के चेयरमैन भी हैं. कुछ महीने पहले राजव गुलाटी तब चर्चा में आए थे जब ये खबरें उड़ने लगी थीं कि मसाला कंपनी एमडीएच बिक सकती है. ऐसे में एमडीएच के चेयरमैन राजीव गुलाटी ने ट्विटर पर कंपनी के बिकने की खबरों को अफवाह करार देते हुए पोस्ट शेयर किया था.

— MDH Spices Official (@SpicesMdh)Marc2अपने ट्वीट में उन्होंने कहा था कि, ‘ये खबर पूरी तरह झूठी, मनगढ़ंत और निराधार है. एमडीएच प्राइवेट लिमिटेड एक विरासत है जिसे खड़ा करने में महाशय चुन्नी लाल और महाशय धर्मपाल ने अपना पूरा जीवन लगा दिया. हम उस विरासत को पूरे दिल से आगे ले जाने के लिए प्रतिबद्ध हैं. इस तरह की अफवाहों पर भरोसा न करें.’

राजीव गुलाटी ने कहा था कि वह ऐसी फर्जी खबरों की कड़े शब्दों में निंदा करते हैं और लोगों से अपील करते हैं कि ऐसी किसी भी अफवाहों का यकीन न करें.

धर्मपाल गुलाटी ने बनाया था ब्रांड
बता दें कि 1919 में सियालकोट, पाकिस्तान में महाशय धर्मपाल गुलाटी के पिता महाशय चुन्नी लाल ने महाशियां दी हट्टी यानी एमडीएच की स्थापना की थी.  देश के बंटवारे के बाद गुलाटी परिवार भारत आ गया. बढ़ई का काम सीखने से लेकर तांगा चलाने के बाद मात्र 1000 रुपये से धर्मपाल गुलाटी ने भारत में इस एमडीएच कंपनी को शुरू किया और अपनी सुझबूझ व मेहनत से पांचवीं तक पढ़े महाशय धरमपाल गुलाटी ने इसे कामयाबी की बुलंदियों तक पहुंचा दिया. अब राजीव गुलाटी ने अपनी इस विरासत को आगे बढ़ाने का जिम्मा उठाया है.

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