भूज फिल्म के अंदर दिखाए एसे सीन को देखकर अपना सिर पकड़ लेंगे, लोगो ने कहा फिल्म के नाम पर उल्लू बनाते हो

भूज फिल्म के अंदर दिखाए एसे सीन को  देखकर अपना सिर पकड़ लेंगे, लोगो ने कहा फिल्म के नाम पर उल्लू बनाते हो

‘खोदा पहाड़ निकली चुहिया’, ये कहावत तो मैंने कई बार सुनी थी, लेकिन महसूस आज किया हूं. स्वतंत्रता दिवस के मौके पर हम वैसे भी देशभक्ति के रंग में डूब जाया करते हैं, उसमें यदि आपने देशप्रेम से ओतप्रोत कोई सिनेमा देख लिया और वो अंदर तक असर कर गया, तो देशभक्ति का रंग और चोखा हो जाता है. मेरे साथ भी ऐसा ही हुआ, अमेजन प्राइम वीडियो पर रिलीज हुई सिद्धार्थ मल्होत्रा और कियारा आडवाणी की फिल्म ‘शेरशाह’ देखने के बाद मेरे अंदर राष्ट्रप्रेम हिलोरे मारने लगा. कारगिल वॉर के नायक शहीद कैप्टन विक्रम बत्रा की जीवनी पर आधारित इस फिल्म को देखने के बाद शरीर पर सिहरन थी और अंदर भारत माता के जयकारे गूंज रहे थे. इसी भाव को लिए मैंने डिज्नी प्लस हॉटस्टार पर रिलीज हुई अजय देवगन और संजय दत्त की फिल्म ‘भुज’ देख ली. यकीन मानिए भुज ने फिल्म ‘शेरशाह’ देखने का सारा माजा किरकिरा कर दिया.

‘गंगाजल’ और ‘सिंघम’ फिल्म में अपने दमदार अभिनय की वजह से अजय देवगन वर्दी में हमेशा सबको लुभाते रहे हैं. इसी वजह से बहुत बड़ी उम्मीद थी कि उनकी फिल्म ‘भुज: द प्राइड ऑफ इंडिया’ (Bhuj The Pride of India) बेहतरीन सिनेमा साबित होगी. ऊपर से इस फिल्म की स्टारकास्ट भी दमदार थी. इसमें अजय देवगन और संजय दत्त के साथ में शरद केलकर, सोनाक्षी स‍िन्‍हा, नोरा फतेही और ऐमी व‍िर्क जैसे जाने-माने कलाकार थे. लेकिन कलाकार से क्या होता, जब उनके लायक किरदार ही न हो. फिल्म में संजय दत्त और सोनाक्षी सिन्हा को क्यों लिया गया और लिया भी गया तो उनसे क्या रोल कराया गया, यहां यह समझ से परे है. उनकी जगह कोई भी कलाकार होता, तो भी कोई फर्क नहीं पड़ता. ऊपर से फिल्म की कहानी, जो बताई गई वो दिखाई नहीं गई, जो दिखाने की कोशिश की गई, वो सही से दिखा नहीं पाए. मतलब सब गुड़ गोबर कर दिया है.

आइए जानते हैं फिल्म ‘भुज: द प्राइड ऑफ इंडिया’ की 10 बड़ी गलतियां…

फिल्म की कहानी क्या है, समझ नहीं आता: ‘भुज: द प्राइड ऑफ इंडिया’ शुरू होने से पहले ही फिल्म के मेकर्स यह बात साफ कर देते हैं कि ये फिल्म किसी भी सच्ची घटना पर आधारित या प्रेरित नहीं है. यह पूरी तरह एक काल्पनिक कहानी है. हालांकि, इससे पहले फिल्म के दो ट्रेलर रिलीज किए गए थे. इस दौरान सोशल मीडिया पर प्रचार किया गया कि फिल्म भारतीय वायुसेना के जांबाज अफसर विजय कार्णिक की सच्ची कहानी पर आधारित है, जिसमें साल 1971 में हुए भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान उनके द्वारा किए गए एक साहसी कार्य को दिखाया गया है. लेकिन फिल्म में ऐसा नहीं है. ये घटना फिल्म का एक छोटा सा हिस्सा है. इसमें एक साथ कई कहानियां दिखाई गई हैं, जिनको आपस में जोड़ने की नाकाम कोशिश की गई है. फिल्म काल्पनिक बनाने के चक्कर में कल्पना की उड़ान में उलझ कर रह गई है.

मुख्य घटना को ही जल्दी निपटा दिया है: अजय देवगन की फिल्म का नाम ‘भुज: द प्राइड ऑफ इंडिया’ है. नाम से प्रतीत होता है कि फिल्म भुज में हुई घटना पर आधारित है. जैसा कि पहले बताया गया है कि फिल्म में स्क्वाड्रन लीडर विजय कार्णिक के अदम्य साहस के साथ उस जोश और जुनून को दिखाया जाना था, जिसमें उन्होंने पाकिस्तानी वायुसेना द्वारा भुज एयरबेस बर्बाद करने के बाद गांव की 300 महिलाओं को लेकर रातभर में रनवे मरम्मत करके तैयार कर देते हैं. देखा जाए, तो ये घटना ऐतिहासिक और रोचक है. यदि इसे ही सही तरीके से दिखाया जाता तो दर्शकों को भावुकता के धागे से बांधा जा सकता था, लेकिन मेकर्स ऐसा नहीं कर पाए. इतनी बड़ी घटना को महज 15 मिनट में निपटा दिया गया है. जो दिखाया गया है, वो भी इतना बनावटी लगता है कि इमोशनल बॉन्डिंग नहीं बन पाती.

VFX और एनीमेशन की क्वालिटी रद्दी है: आजकल फिल्मों में VFX और एनीमेशन का चलन तेजी से बढ़ा है. कोरोना काल में जब रियल लोकेशन पर जाकर फिल्म शूट करने की परमिशन नहीं मिली तो कई फिल्मकारों ने तकनीकी का इस्तेमाल करके मुंबई में ही वैसा लोकेशन क्रिएट कर लिया. आपने फिल्म बाहुबली देखी होगी. उसमें विशाल झरना, पहाड़ और बड़ी-बड़ी सेनाओं के बीच युद्ध, सबकुछ VFX और एनीमेशन की बदौलत संभव हुआ, लेकिन कही भी देखकर ऐसा नहीं लगा कि नकली संसार की रचना की गई है. लेकिन आप भुज फिल्म को देखिए. इस अधिकतर सीन में दिख जाता है कि तकनीकी के सहारे नकली दृश्य की रचनी की गई है. कार्टून फिल्मों और वीडियो गेम्स में जिस तरह हवाई जहाज उड़ाते और गोलीबारी करते देखा जाता है, वैसा ही कुछ फिल्म को देखने पर भी लगता है.

फिल्म ‘बॉर्डर’ की झलक साफ दिखती है: यदि आपने सनी देओल और सुनील शेट्टी की फिल्म बॉर्डर देखी होगी, तो आपको इस फिल्म की एक घटना देखते ही उसकी याद आ जाएगी. दरअसल, साल 1971 में हुए युद्ध के दौरान राजस्थान के लोंगेवाला पोस्ट पर पाकिस्तानी सेना और भारतीय सेना के जवानों के बीच भयंकर युद्ध हुआ था. उस समय भारत के 120 जवानों ने ब्रिगेडियर कुलदीप सिंह चांदपुरी के नेतृत्व में हजारों पाक सैनिकों के छक्के छुड़ा दिए थे. इसी पर आधारित फिल्म ‘बॉर्डर’ बनाई गई थी. फिल्म भुज में भी इस घटना रिक्रिएट किया गया है. इसमें ब्रिगेडियर चांदपुरी का किरदार शरद केलकर ने निभाया है, जबकि बॉर्डर में सनी देओल ने निभाया था. फिल्म गदर का एक डायलॉग है, ‘बाप-बाप होता है, बेटा-बेटा होता है’. इसलिए कह रहा हूं कि ‘भुज’ को ‘बॉर्डर’ बनाने की कोशिश नहीं करनी चाहिए थी.

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