Vishal Bhardwaj Interview: इरफान नहीं रहे तो ‘खुफिया’ में दूसरे हीरो को लिया ही नहीं, विशाल भारद्वाज का खुलासा

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Vishal Bhardwaj :

हिंदी सिनेमा में अपनी पसंद का संगीत लाने के लिए विशाल भारद्वाज फिल्म निर्देशक बने। बचपन में खूब क्रिकेट खेलने वाले विशाल अब उस घड़ी का शुक्रिया अदा करते हैं जब उन्हें अंगुली में चोट लगने के कारण क्रिकेट छोड़ना पड़ा।
पांच साल बाद उनकी बनाई कहानियां फिर से परदे पर लौटी हैं। सोनी लिव पर रिलीज हुई जासूसी सीरीज ‘चार्ली चोपड़ा एंड द मिस्ट्री ऑफ सोलांग’ के बाद उनकी जासूसी फिल्म ‘खुफिया’ नेटफ्लिक्स पर रिलीज होने जा रही है।

पहले आप शेक्सपीयर के फैन बने, इन दिनों शायद आप अगाथा क्रिस्टी के फैन बन चुके हैं तो सस्पेंस की तरफ आपका रुझान कैसे हुआ?

सस्पेंस की तरफ रुझान सबका ही होता है। आप सफर में होते हैं तो जासूसी सिनेमा पढ़ते हैं। जासूसी नॉवेल पढ़ने में जो मजा आता था तो पूरा सफर कट जाता था।
अब भी जासूसी फिल्में देखने में बहुत मजा आता है। आप देखिए सत्यजीत रे कितने बड़े फिल्ममेकर थे, और, सबको लगता था कितने सीरियस फिल्ममेकर हैं, पाथेर पांचाली जैसी फिल्में बनाईं।
लेकिन, जो ‘सोनार किला’ उन्होंने बनाया है, उसको देखिए। या फिर उनका जो डिटेक्टिव है, फेलुदा। फिर, ब्योमकेश बख्शी भी उन्होंने किया। तो सस्पेंस तो फिल्ममेकर का सबसे फेवरेट जॉनर है।

When Vishal Bhardwaj’s ‘Khufiya’ And ‘Charli ‘ Are Coming Together :

ऐसा हुआ कि दोनों की रिलीज डेट एक साथ आ गई क्योंकि ‘खुफिया’ तो बहुत पहले शूट हो गई थी। ‘चार्ली’ तो अभी इसी साल 2023 में ही शूट हुई है।
दोनों का जॉनर अलग है तो एक दूसरे को काटेंगी नहीं। एक हू डन इट है और एक एस्पायोनॉज थ्रिलर है तो दोनों एक दूसरे को सपोर्ट ही करेंगी। Vishal Bhardwaj चाहता था कि उसका काम बाहर आए।
पांच साल हो गए मेरा काम बाहर आए। मेरा जो आखिरी लॉन्ग फॉर्मेट था ‘पटाखा’, वो पांच साल पहले आई थी। अब मुझे कोई बोले कि तुम्हारी अगली फिल्म 2028 में आएगी तो मैं तो डिप्रेशन में चला जाऊंगा।

क्यों, ये भी तो हो सकता है कि आप खुद को रिइन्वेंट कर रहे हों जैसे शाहरुख ने किया खुद को ‘पठान’ और ‘जवान में’…

हां, लेकिन उन्होंने तो जानबूझकर किया। हमारी तो रोजी रोटी यही है।
शाहरुख को थोड़े ही जरूरत है। वह शाहरुख हैं, वह खुद को रिइन्वेंट कर सकते हैं, समय ले सकते हैं। हम लोग नहीं कर सकते। हम तो जो है, उसी वक्त में बनाना है।

Vishal Bhardwaj’s ‘Patakha’ , ‘Rangoon’ And ‘Saat Khoon Maaph’ :

बिल्कुल भी नहीं होता क्योंकि जो वक्त निकल गया, उसके लिए तो मैं वैसे भी रिग्रेट नहीं करता हूं। लेकिन ये है कि एक रचनाकार या एक फिल्मकार के रूप में आपके साथ बस एक चीज होती है कि आपके उस मूवमेंट में ऑनेस्टी होनी चाहिए।
आप अगर ऑनेस्ट नहीं हैं और आपने अपनी मीडियोक्रिटी एक्सेप्ट करनी शुरू कर दी तो फिर तो, पतन तो है। अब आपसे अगर आपका जजमेंट ठीक नहीं हुआ, किसी चीज को लेकर तो आप उसे रिग्रेट कर सकते हैं।
आप उसका रीजन देखते हैं कि क्या वजह रही कि जो चीज दूसरों को दिखी वो मैं क्यों नहीं देख पाया।

तो अमर भूषण की ये किताब कब पढ़ी आपने?

ये किताब 2014-15 में रिलीज हुई थी। मेरे एक आईपीएस दोस्त हैं कमल नयन चौबे, वह दिल्ली में भी पोस्टेड रहे हैं, आप तो जानते ही होंगे। अमर भूषण जी उनके दोस्त रहे हैं।

उन्होंने एक दिन कहा कि कल मैंने एक किताब का सिनॉप्सिस उसके रिलीज फंक्शन में पढ़ा तो मुझे लगा कि इस पर तुम्हें फिल्म बनानी चाहिए।

वो मेरे पास किताब लेकर आए और मैं उस वक्त इतना ज्यादा बिजी था और अमर जी को बहुत जल्दी चाहिए थी क्योंकि उनको कहीं और से भी ऑफर आया हुआ था। तो मैंने छोड़ दिया कि हड़बड़ी में मुझसे नहीं होगा कि और मैं आपको फंसा दूं।

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